भगवान,
अगर आप सच में हैं तो मेरी बात सुनो।
जिंदगी दी आपने, माया रची आपने,
और फिर उसी माया के चक्र में हमें फँसाया आपने।
अब कहते हो—माया से दूर रहो।
पर यह कैसी बात हुई, जो माया की ही इस जाल में उलझाए रखो?
भक्ति करो, निश्चल मन से।
पर उसी मन के साथ दे दिया एक ऐसा दिमाग,
जो हर कदम पर सवाल करता है, उलझाता है, समझाता है, फिर गुमराह भी करता है।
और ऊपर से दे दिया ये पहाड़ सा शरीर—
जिसके अपने नियम, अपने कर्मकांड।
कभी थकता है, कभी टूटता है, कभी खुद से ही लड़ता है।
बताओ, भगवान, आप हमसे क्या चाहते हो?
क्या चाहते हो उस मन से जो हर पल द्वंद्व में है?
क्या चाहते हो उस शरीर से जो बोझ बन गया है?
क्या चाहते हो उस आत्मा से जो भटकती है इस भ्रमित संसार में?
क्यों इस उलझन को रचा आपने?
क्यों दिया है हमे भक्ति का रास्ता
जब खुद उसी रास्ते पर कांटे और खतरनाक मोड़ रखे हो?
क्या यह माया ही आपका संदेश है?
या फिर उस माया के पार कुछ और भी है, जिसे देखना हमसे छिपाते हो?
अगर आप हो, तो बताओ—
हम क्यों जकड़े हैं इस संघर्ष में?
हमारा अंत क्या है? हमारा उद्देश्य क्या है?
क्या बस भक्ति में लीन होना ही अंतिम सच्चाई है?
या फिर उस भक्ति के आगे भी कुछ और है, जो हमारी समझ से परे है?
भगवान, मेरी इन सवालों का जवाब दो,
न कि कोई कहानियाँ और उपदेश।
सीधी बात करो—
क्या है वह रास्ता, जो हमें इस माया से बाहर निकाल सके?
क्या है वह सत्य, जो हमारे दिल के भीतर छिपा है?
मैं नहीं चाहता झूठी उम्मीदें,
न किसी नेम की रोशनी जो क्षणिक हो।
मैं चाहता हूँ सच्चा सुकून—
जो इस शरीर, इस मन, इस माया की सीमा से परे हो।
अगर आप हो, तो दिखाओ हमें,
वरना हम खुद ही अपनी राह बनायेंगे—
जिसमें सवालों के जवाब भी होंगे,
और उन सवालों की गहराई भी।
आपका इंतजार रहेगा।
कहीं उस सच्चाई के द्वार पर,
जहाँ सवाल भी खुद उत्तर बन जाएं।
— एक उलझता इंसान

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




