दर्द के अनुबंध अब तो पक गए हैं
चलते चलते पग हमारे थक गए हैं
भीड़ थी कल साथ यारों का हुजूम
आज तो सब बादलों से छट गए हैं
नन्हा बच्चा नींद के आगोश में ख़ुश
स्वप्न देखो कैसे मुँह पर छप गए हैं
आदमी का कद घटा जो इस कदर
आईने पर रात दिन सब डट गए हैं
हर कदम पर हैं अर्थ की रुबाईयां
रिश्ते नाते प्यार वफ़ा सिमट गए हैं
पी रहे हैं जहर तक लेके उधार जो
कर्ज में दिन रात घर वर पट गए हैं
खंडहर में जैसे रहते हैं विषधर कई
दास दिल के दर्द यूँ गहरे तक गए हैं।।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




