चिराग
धन्यकुमार जिनपाल बिराजदार
पत्थर तो दूर की बात है,
आज इंसान भी पिघलते नहीं।
मुहब्बत का चिराग जरूर है,
इन अंधेरों में वो जलते नहीं।
कुछ मीठे अल्फ़ाज़ हैं दिल में,
मगर होंठों से निकलते नहीं।
वो चोट ही ऐसी है यारों,
अब वो ज़ख़्म संभलते नहीं।
मोहब्बत की बातें तो बहुत हैं,
मगर हालात सँवरते नहीं।