दादा-दादी,नाना-नानी का दौर
पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती रहतीं हैं
मनोरंजन के साधन बदलते रहते हैं
पर सबसे ख़ास दौर तो हुआ करता था
दादा-दादी और नाना-नानी का
उम्र बेशक ख़त्म हो जाएगी
पर यादें नहीं
और न ही ख़त्म होंगे
उनके साथ बिताए पल
आज छोटे छोटे बच्चों को
उनके दादाजी के साथ खेलते देखा
तो इतने समय बाद
हमें भी वो दिन याद आ गए..
हमारा अपने दादाजी से
कृष्ण-सुदामा की कहानी सुनना
सुबह सवेरे उनके साथ
सैर पर जाने का शौक होना
पर उनकी रफ़्तार से
अपने कदम न मिला पाना
उनके आस-पास बैठकर
किसी ने हाथ किसी ने पैर
और किसी ने सिर दबाते रहना
बड़े से बर्तन में खीर बनवाना
और सब बच्चों का एक साथ
उसी बर्तन में चम्मच घुमाना
नए दौर ने उम्र से पहले ही
हमारे बच्चे बड़े कर दिए
और हम बड़ों ने उन्हें
मनोरंजन की अलग दुनिया देकर
उनके जीवन की
खूबसूरत कहानियाँ ख़त्म कर दीं..
----वन्दना सूद