चंदा के रथ पर
सितारे होके सवार चले
झूमते -झूमते,लहराते
जैसे कोई बहार चले
छिटकी -छिटकी चांदनी
धरती से अंबर तक
हो कृतज्ञ सब देख रहे
तृण -तृण से तरुवर तक
गीत कानों में फुसफुसाते
नम-नम मधुर बयार चले
उज्जवल उज्जवल आंगन में
अमन चैन सौगात है
बैशाखी का महिना है
चौदहवीं की रात है
उतर -उतर मन -मन आंगन
करती हुई विहार चले
धवल -धवल है चंद्रकिरन
धवल -धवल चंचल चितवन
दिशा -दिशा है धवल नवल
धवल-धवल है वन-वन उपवन
धवलित करता अंतर्मन
किरणों का संसार चले
खेत -खेत के मेड़ से
दृष्टि जहां तक जाती है
श्वेत -श्वेत ही महीन चुनरिया
बिछी -बिछी नजर आती है
कोई तो देखे मेरी ओर
करती हुई पुकार चले
बरसा देती है मंद रोशनी
खेतों, वनों, मैदानों पर
कलियों -कलियों, फूल - फूल और
फलियों पर, बागानों पर
रात -रात भर फेंक उजाला
कर धरा श्रृंगार चले
चंदा के रथ पर
सितारे होके सवार चले।
मनोज कुमार सोनवानी "समदिल"
पाली, कोरबा, छत्तीसगढ़
सर्वाधिकार अधीन है