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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

बेटी जब विदा हो जाती है

खुशबू फूल से, जैसे, जुदा हो जाती है
जब, बाबुल से, बेटी,विदा हो जाती है

हरियाली उपवन से, रंग तितलियों से
जैसे, उड़ सी जाती है,हवा हो जाती है

सिसकती है, घर का, कोना कोना
आंगन भी, बे-सदा हो जाती है

बेजान हो जाती है, बेटी की रसोई
बर्तनें आपस में,खफा खफा हो जाती है।

बेटी जब विदा हो जाती है।।


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (12)

+

ललित दाधीच said

Waha waha, Kya Baat hai, Beti ke liye ye prem hamesha yaad rahta hai ❤️❤️ Bahut khoob , Bahut khoob.

शिवचरण दास said

रंग खुशबू फूल तितली ये हरियाली भी उदास हैं
मनोज समदिल बेटी की विदाई के पल खास हैं

आलम-ए-ग़ज़ल - परवेज़ अहमद said

बेटी की विदाई के बाद जो जुदाई मिलती है उस पर क्या बेहतरीन रचना रची है आपने, मनोज जी! वाह! वाह! बहुत ख़ूब! बे-मिसाल कलाम हुआ ये! 👌👌👏👏❤️🙏 आदाब, मनोज जी!

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

आदरणीय ललित जी , शिवचरन सर जी, परवेज जी हृदय से धन्यवाद आभार 🙏🌹🙏

रीना कुमारी प्रजापत said

Bahut sundar.....ye niyam rit kisne banayi hogi

Lekhram Yadav said

बहुत खूबसूरत बिदाई और तन्हाई के साथ एक बहुत खूबसूरत और भावनात्मक रचना, आपको सादर नमस्कार समदिल भाई।

वन्दना सूद said

हृदय स्पर्श करती रचना 👌👌👏👏बहुत सुंदर

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

आदरणीय लेखराम सर जी, रीना जी, वन्दना जी, खूबसूरत समीक्षा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार, नमस्कार 🙏🌹

सरिता पाठक said

मनोज भईया जी आपकी रचना ने मेरे ह्रदय को छू लिया, क्योंकि मेरी बेटी की शादी के लिए भी लड़का देख रहे हैं, उसकी विदाई के पल का सोच कर ही मै सिहर उठती हूँ, बहुत खूब, उम्दा 👌👌🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

सरिता जी, सचमुच बेटी की विदाई बहुत ही नाजुक और स्वर्णिम पल होता है। तीन साल पहले बेटी की विदाई का वो दृश्य आज भी पूरे परिवार को याद है जब मैं स्वयं को सम्हाल न सका, बेहोश हो गया था।जब गांव से दूर शहर में पढ़ाई कर रही थी,चार छः महीने में घर आया करती थी,वो अलग फीलिंग थी,जाब लगी तब भी वैसे ही फीलिंग पर विदाई के समय तो लगता था कि किसी ने दिल काट कर अलग कर दिया हो। कभी कभी तो लगता है सारी परंपराएं बदल देनी चाहिए।एक परिवार की भांति दिल की बातों को साझा करना अच्छा लगता है।आप और आपका परिवार हमेशा खुश रहें,सादर प्रणाम 🙏🌹

सरिता पाठक said

सचमुच भईया जी, काश हम इस परम्परा को बदल पाते किसी को भी अपनी बेटी कभी विदा नहीं करनी पड़ती, मैंने to अपनी बेटी को कभी अपने से दूर दूसरे शहर कभी भेजा ही नहीं, जॉब भी यहीं कर रही है वो bhi मुझे छोड़ कर शादी करके जाना नहीं चाहती, वो कृष्ण भगवान और राधा रानी की भक्त है, कृष्ण जी और राधा जी के किसी भक्त से ही शादी करना चाहती है जो अपनी जाति का हो क्योंकि मेरे पति अंतरजातीय विवाह नहीं करेंगे,प्रयास जारी है, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

सरिता बहन 🙏 ऐसे ही संस्कार भरे विचारों से घर परिवार संवरता है।

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