कभी-कभी पहले बाजार जाया भी करते थे,
कुछ ना कुछ लाया भी करते थे,
किसी न किसी से नजरे मिलाया भी करते थे,
वो होश में थे तो उन्हें हंसाया भी करते थे,
बात से बातों में उन्हें भी फसाया करते थे,
दिल का भी उन पर इल्जाम लगाया करते थे,
बाजार के हो ना हो बाजार जाया करते थे,
बाजार में नजरे हो ना हो बाज़ारी हो जाया करते थे,
वो दिन भी थे अदाकारी के,
अब तो हालात कुछ ऐसे हैं,
मुश्किल से ही इस घर से उस घर के हो जाया करते हैं।।
बाजार में ही छोड़ आए हैं अपना दिल,
वो आकर थोड़ी-थोड़ी मोहब्बत अपने सीने में ले जाया करते हैं।।
हम भी इश्क के जालिमों,
बाज़ार ए मोहब्बत निभाया करते हैं।।
- ललित दाधीच।।