दशकों से हैं ठनकते-सरकते-सिसकते,
बेचारे एक-दो-तीन-पांच-दस-बीस पैसे,
चवन्नी-अठन्नी के बदकिस्मत ये सिक्के,
बयां करते निज दर्द-ए-दिल की दास्तान ,
गुजरा जमाना तिजोरी में था आशियाना,
वक्त के थपेड़े छिन गया हक+मालिकाना,
गंगा में प्रवाहित जमीं खंडहरों में समाहित ,
खोटे-सिक्के कौड़ी के भी भाव नहीं बिकते,
अस्तित्व बरकरारी के लिए पांव है थिरकते ,
नतमस्तक होकर लगाते है गुहार सिक्के,
हे करतार रिजर्व बैंक सरकार साहूकार ,
हजूर आए हैं मन्नत मांगने आपके घर द्वार,
सुन लो हमारी गुहार और सिसकती पुकार,
आजाद सल्तनत में गुलामों से भी बदतर ,
हो रहा है हमारा कई दशकों से तिरस्कार,
हताश है हम झेलते -२ धिक्कार - फटकार,
इंसान के हाथ आते है हम कभी - कभार,
फेंक देते है दूर जैसे खेत से खरपतवार ,
भिखारी भी दूध से मक्खी सदृश निकाले ,
खोटे सिक्के की देखकर दुर्दशा ए मतवाले,
एहसानमंद रहेंगे आपके सदैव हम सिक्के,
नोट बंदी की तरह सुनाओ फरमान-ऐलान ,
नए सिक्के बंद होकर खोटे सिक्के चलेंगे ,
नए सिक्के तत्काल खोटे सिक्कों के बदले,
विनिमय करने का सामयिक सुनहरा-मौका,
काउंटर उपलब्ध होंगे बैंकों - डाकघरों में,
कतारें लगेंगी आयेंगे सिक्के बदलने लोग,
ढूंढे जायेंगे सिक्के खंडहरों-कबाडखानों में,
पुराने घर-संदूक-आलमारी- तहखानों में,
रेशमी गठड़ियों-बोरों में सुसज्जित होकर ,
आलीशान रेहड़ियों-गाड़ियों में ढोए जायेंगे,
वाह-२ होगी विधि-मान्य सिक्के गुनगुनाएंगे,
पुनः प्रचलन की खुशी में पताका फहराएंगे,
जनता की जेबों में होगी ठनठनाहट जब ,
पूर्ण होगी खोटे सिक्के की अभिलाषा तब !
➖ राजेश कुमार कौशल