सब्र कितना करे मोहब्बत में इंसान।
बदले मौसम ने बदल डाला इंसान।।
कुछ पाने की ख्वाहिशे पाल कर रखी।
चालबाजी से परेशान हो रहा इंसान।।
सियासत के खेल में उलझ गया धर्म।
पाखण्ड को इबादत मानने लगा इंसान।।
फिरकापरस्ती का दौर हो चला देखो।
भ्रस्टाचार में और डूबता जा रहा इंसान।।
बेरहमी का राज झूठ की बात 'उपदेश'।
एक दूसरे पर मर मिटना भुला इंसान।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद