बचपन
डॉ. एच सी विपिन कुमार जैन"विख्यात"
बचपन की यादें, मन में अब भी ताज़ा हैं,
वो कागज़ की कश्ती, और बारिश का बाज़ा है।
मिट्टी के घरौंदे बनाना, और धूप में खेलना,
वो बेफिक्री का आलम, कहाँ अब वो मेला?
वो दादी की कहानियाँ, और नानी का प्यार,
वो छोटे-छोटे झगड़े, और फिर से मनुहार।
वो स्कूल के दिन, और दोस्तों की टोली,
हर पल में छिपी थी एक भोली सी बोली।
वो पेड़ों पर चढ़ना, और गुल्ली डंडा खेलना,
वो पतंग उड़ाना, और तारों को तकना।
वो चाँद सितारों भरी रातें, और सपनों की दुनिया,
हर चीज़ लगती थी तब कितनी अपनी।
वो रूठना मनाना, और फिर हँस पड़ना,
वो छोटी-छोटी खुशियों में जग जीत लेना।
बचपन का वो सुनहरा ज़माना कहाँ गया,
ज़िम्मेदारी की राहों पर ये मन रम गया।
मगर आज भी जब यादें वो आती हैं,
होंठों पर एक मीठी सी मुस्कान सजाती हैं।
काश वो दिन फिर से लौट आएं कभी,
बचपन की वो मासूमियत मिल जाए सभी।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




