जब ओपेनहाइमर ने
घर की चौखट से बाहर झांका
तो देखा —
इतिहास, विज्ञान, गणित, दर्शन
अर्थशास्त्र, राजनीति, साहित्य —
सब खड़े हैं
हाथों में तलवारें लिए
सतर्क, क्रोधित, तत्पर।
जैसे ही वे बढ़े एक पग आगे
गूँज उठी आकाशवाणी —
लौट जाओ! लौट जाओ!
अपने-अपने स्थानों को
वरना भस्म हो जाएगा सब कुछ
उस अग्निमय प्रतिभा के सम्मुख
जिसे ओपेनहाइमर कहा गया है।
-प्रतीक झा 'ओप्पी'
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज