कहते हैं ना —
प्यार में दिल दे देना चाहिए,
तो हमने भी दे दिया…
पर गलती से साथ में चाबी भी दे दी!
और जनाब!
वो चाबी थी —
हमारे मूड की,
हमारे सुकून की,
यहाँ तक कि हमारी नींद की भी।
वो हँसे — हम हँसे,
वो चुप — हम चुप,
वो गए online —
हमने अपनी साँस रोक ली!
अब बोलो,
ये प्यार था या रिमोट कंट्रोल वाला रिश्ता?
जब भी उनकी मर्ज़ी हुई —
emotion on!
जब मन भर गया —
block और silence mode on!
और हम?
बैठे रहे,
अपनी ही भावनाओं के दरवाज़े पर…
उस चाबी के लौटने की उम्मीद में।
तो अब सुनो —
चाबी अब खुद के पास रखो!
ना कोई दरवाज़ा खुलवाने की ज़रूरत,
ना कोई ताला किसी और के इशारे पर खुलवाना।
क्योंकि भैया —
जब अपने मन का ताला कोई और खोलने लगे,
तो आत्मा किराए के मकान में बदल जाती है।
अब तो उस चाबी से खोलनी है —
स्वाभिमान की तिज़ोरी!
जिसमें ना कोई validation चाहिए,
ना ही किसी की seen-reply की ज़रूरत।
अब जो भी आए —
कह दो —
“स्वागत है… पर ताले की चाबी अब मेरे पास है।”

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




