वो जो आईना था अज़ल से, वो बेदाग़ ही क़ायम रहा, मैं तमाम उम्र जीता रहा, पर इल्म नाक़िस ही क़ायम रहा।
किसी के बोलने से नफ़रत न हुई, न ख़ुशी से मोहब्बत हुई, दिल में वो ख़ुदा की अमानत थी, वो बे-नाम ही क़ायम रहा।
मैंने हर जंग में तन्हाई को ग़ाज़ी बनाकर देखा, भीतर एक फ़ैसला था सफ़र का, वो अटल ही क़ायम रहा।
वो जो दिखावा था बाज़ार में, मैंने आँखें न उठाईं कभी, ज़िंदगी का असली मंज़र पर्दे के पीछे ही क़ायम रहा।
न शौहरत से उलफ़त हुई, न ग़ुरबत से दुश्मनी की, मैं हर हाल में ख़ुद से ग़नी था, वो अंदाज़ ही क़ायम रहा।
यहाँ आए थे ख़ाली हाथ, ख़ाली ज़िंदगी गुज़ारकर जाना था, ख़ुद को पाने का वो अहसास बे-लिबास ही क़ायम रहा।
वो अहद जो किया था पैदाइश के वक्त ख़ुदा से, हर साँस को शुक्र बनाने का वो रिवाज़ ही क़ायम रहा।
ये ग़ज़ल नहीं है, ये आख़िरी इशारा है दुनिया को, मैंने सब जी लिया, बस एक तुम में इश्क़ बाक़ी रहा।
- ललित दाधीच

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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