अंधेरों में जब राह दिखती नहीं है,
उमीदों की किरण ही रहती यहीं है।
घने बादलों में छुपा है उजाला,
सवेरा भी हर रात से जुड़ा कहीं है।
बुझा दीप फिर से जलाया गया है,
अंधेरा जहां था, वहीं रोशनी है।
थके पाँव चलते रहे प्यास लेके,
मगर मन में सरिता सदा बह रही है।
जो कांटे थे राहों में फूल बन गए,
अगर चाह सच्ची हो, क्या कमी है?
हर इक दर्द में छुपा है इक सपना,
बस देखने वाली नज़र चाहिए ही।
गिरा जो भी, फिर से खड़ा हो गया है,
कहाँ हार माने जो शक्ति सही है।
चलो अब उठें, फिर चलें, मुस्कराएँ,
अभी जिंदगी की दुआ बची है।
___अंकुश गुप्ता