ऐ! पावस की बूंदों
आओ, थोड़ा नहला दो
मेरा,गम सहला दो
टूट चुकी है
प्रीत की डोर
जिसकी तपन से
झुलस रहा है
तन-मन
तनिक, शीतला दो
चली थी लू
कुछ पहले, नफरत की
विश्वास, अब भी
जल रहें हैं
बूझा दो, बहला दो
सुखा दिया है
उनकी सितम ने
आंसुओ को
आओ,
थोड़ी सी नमी दिला दो
बिछुरन की उमस से
मन बेचैन बेचैन है
सींच दो, शांत्वना के
कुछ फूल खिला दो
मिट गयी है, मन से
जीने की,सारी कलाएं
फुहार दो,
की तो सिखला दो
निश्चेत, खोया खोया
मेरे चेहरे की आभा
हवा को साथ लो
कानों को गुतला दो
आओ,
मेरा ग़म सहला दो।
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




