न शस्त्र उठे, न रक्त बहे,
बस सत्य-सुधा से निरंतर पथ चले।
जहाँ वचन में प्रेम पले,
वहीं अहिंसा दीप्त दीप जले।
क्रोध नहीं, करुणा का स्वर,
हर मन में हो सद्भावना का घर।
दुश्मन को भी गले लगाएं,
मानवता की अनमोल रीत निभाएं।
बुद्ध, महावीर, गांधी का पंथ,
नहीं दुर्बलता, बलवान अंतःकंठ।
संघर्षों में जो शांतचित्त रहे,
वही सच्चे और श्रेष्ठ वीर कहे।
"हिंसा ने जो दुर्भावना के बीज बोए,
छाया में बस भीषण कांटे ही उगे।”
पर जिसने क्षमा का व्रत साधा,
वही बना युगों का आदर्श महान ।
अहिंसा आत्मा की है जीत,
प्रीति जहाँ, वहीं जीवनमूल्य की रीत।
चलो उसी राह पर मुस्काएं,
धरती को स्वर्ग हम बनाएं।
प्रो. स्मिता शंकर