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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

तवारीख़ - रीना कुमारी प्रजापत


तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने
तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने ,
पर कमबख़्त तक़दीर
कुछ साधारण लिखाना चाहती है।
तारीखें कितनी ही निकल गई
ख़ास तवारीख़ लिखने में,
पर अपनों ने ही हरा दिया
मुझे तवारीख़ लिखने में।

तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने,
पर कमबख़्त तक़दीर
कुछ साधारण लिखाना चाहती है।
मेरा तवारीख़ ख़ास बने, यादगार बने,
हमेशा यही कोशिश की मैंने,
पर मेरा तवारीख़ ख़ास ना बने ,
यादगार ना बने,
यह कोशिश की मेरे अपनों ने ।

तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने ,
पर कमबख़्त तक़दीर
कुछ साधारण लिखाना चाहती है ।
तवारीख़ को कुछ यूं सजा दूंगी ,
आसमां को जमीं पर ला दूंगी,
मुकम्मल जहां बना दूंगी,
यही कोशिश की मैंने।
पर कामयाब ना हो
हम तवारीख़ को सजाने में ,
आसमां को जमीं पर लाने में ,
यह कोशिश की दुनिया ने ।

तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने ,
पर कमबख़्त तक़दीर
कुछ साधारण लिखाना चाहती है।

~रीना कुमारी प्रजापत




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (5)

+

अशोक कुमार पचौरी said

रीना जी आपकी अधिकतर कवितायेँ बहुत ही मार्मिक एवं अपनों द्वारा किये गए गलत व्यवहार या साथ न दिए जाने के सन्दर्भ में होती हैं, आप जिस प्रकार चुनिंदा शब्दों का प्रयोग करके उनको जबाब देती हैं या विश्लेषण करती हैं वो बहुत ही शोभनीय है - अत्यंत सुन्दर रचना

नीता शास्वत said

अत्यंत खूबसूरत रचना

Amit Dwiwedi said

Nyc poem

श्रेया कुमारी said

बहुत भावुक लेख - अपनों का सताया हुआ हर एक इंसान इसे खुद से जोड़ पायेगा।

Riya Chauhan said

nice poem

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