तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने
तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने ,
पर कमबख़्त तक़दीर
कुछ साधारण लिखाना चाहती है।
तारीखें कितनी ही निकल गई
ख़ास तवारीख़ लिखने में,
पर अपनों ने ही हरा दिया
मुझे तवारीख़ लिखने में।
तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने,
पर कमबख़्त तक़दीर
कुछ साधारण लिखाना चाहती है।
मेरा तवारीख़ ख़ास बने, यादगार बने,
हमेशा यही कोशिश की मैंने,
पर मेरा तवारीख़ ख़ास ना बने ,
यादगार ना बने,
यह कोशिश की मेरे अपनों ने ।
तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने ,
पर कमबख़्त तक़दीर
कुछ साधारण लिखाना चाहती है ।
तवारीख़ को कुछ यूं सजा दूंगी ,
आसमां को जमीं पर ला दूंगी,
मुकम्मल जहां बना दूंगी,
यही कोशिश की मैंने।
पर कामयाब ना हो
हम तवारीख़ को सजाने में ,
आसमां को जमीं पर लाने में ,
यह कोशिश की दुनिया ने ।
तवारीख़ यहां कुछ ख़ास लिखेंगे
ऐसा सोचा था मैंने ,
पर कमबख़्त तक़दीर
कुछ साधारण लिखाना चाहती है।
~रीना कुमारी प्रजापत