सबके अपने सत्य हैं,
सबके अपने झूठ।
कोई कहता लाभ इसे,
तो किसी को लगती लूट।
सबके अपने कष्ट हैं,
सबकी अपनी जंग।
कोई कभी टूट जाता है,
कोई हो जाता तंग।
सबकी अपनी मान्यता,
सबका निज विश्वास।
कोई कभी दूर हो जाता,
और कोई आता पास।
समय समय की मित्रता,
समय समय की फूट।
कोई कभी रूठ जाता है,
और कोई जाता टूट।
हित साधो तो मित्रता,
ना साधो तो फूट।
रूठा कभी मान जाता है,
और अपना जाता टूट।
जिसमें ‘मैं’ का फ़ायदा,
‘मैं’ का है नुक़सान।
‘मैं’ का बढ़ता मान देखकर,
‘मैं’ की जलती जान॥
- आशुतोष राणा