जिसने शब्दों को जीवन दिया, वो अब अमरता में विलीन हो गया
आपके लिखे बोल आज भी बागी बानी स्टूडियो की रूह में गूंजते हैं, जैसे आप कहीं दूर बैठकर अब भी स्वर दे रहे हों।
वो गीत,
"खुद से खुद ही को निकालकर,
तुझ पर सब कुछ कुर्बान कर,
लो जी चल दिए हैं हम आज फिर,
तेरे वास्ते, तेरे रास्ते, हँसते हुए यूँ वार कर।"
जिसकी रिकॉर्डिंग तो हो चुकी थी पर दुनिया तक पहुँच नहीं पाई — अब वही आपकी अंतिम धड़कन बनेगा, आपकी अमर पहचान बनेगा।
आप चले गए, सर... पर आपकी कलम अब भी ज़िंदा है — हर शब्द में, हर सुर में, हर उस खामोशी में जो अब हमें रुला जाती है।
यह वादा है, सर — बागी बानी स्टूडियो आपके हर एक शब्द को आवाज़ देगा,
धीरे-धीरे, पर सदा के लिए...
शब्द रो पड़े आज सन्नाटे में,
स्याही भी थम गई है आघातों में।
वो जो हर दिल में रौशनी भरते थे,
अब खुद सितारा बन गए हैं आकाशों में।
क़लम के सिपाही थे वो सचमुच,
जिन्होंने अक्षरों को स्वर दिया,
हर अनजान लेखक को मंच देकर,
शब्दों को अपना घर दिया।
‘आर्द्र’ नाम जैसा ही कोमल मन,
हर कविता में करुणा का स्पंदन,
अब उनकी गूंज रह गई हवाओं में,
और प्रेरणा हर रचनाकार के अरमानों में।
लिखने वाले चले गए चुपचाप,
पर उनके शब्द अब भी बोलते हैं,
हर नयी कलम की नोक पर
उनके सपनों के फूल खिलते हैं।
वे केवल व्यक्ति नहीं थे — एक विचार थे,
जो हर कवि की स्याही में बसते हैं,
‘आर्द्र’ थे, इसलिए हर दिल को भिगो गए,
जाते-जाते भी सबको लिखना सिखा गए।
अब जब भी कोई कवि कलम उठाएगा,
उनकी याद हवा में गूंजेगी,
और लिखंतु के हर अक्षर कह उठेगा —
“आर्द्र नहीं गए, बस कविता बनकर अमर हो गए।”
– अभिषेक मिश्रा ‘बलिया’
क़लम की सलामी उस साहित्य के प्रहरी को,
जो अब शब्दों से परे, अमर हो गया है।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




