वो हमसे इतनी नफ़रत करते हैं,
वो हमसे इतनी नफ़रत करते हैं
कि पहुॅंचते हैं जब हम किसी महफिल में तो,
वो वहाॅं से निकल जाया करते हैं।
पता नहीं उनके मन में क्या है ?
क्यों वो हमसे इतना जलते हैं।
उनकी महफिल में तो
वो हमे नहीं बुलाते हैं,
उनकी महफिल में तो
वो हमे नहीं बुलाते हैं
अपनों की महफिल में ही हम जाते हैं।
पता नहीं वो क्यों ऐसा करते हैं ?
क्यों वो इतनी बेरुखी दिखाते हैं ?
पहुॅंचते हैं जब हम किसी महफिल में
उनके चेहरे का
नूर कुछ अलग होता है,
पहुॅंचते हैं जब हम किसी महफिल में
उनके चेहरे का
नूर कुछ अलग होता है
देख हमे उस महफिल में वो नूराना चेहरा
बेनूर हो जाता है।
ऐसा भी क्या बैर मुझसे उसका ?
कि अब हम और हमारा काम
उसे नहीं सुहाता है।
----रीना कुमारी प्रजापत
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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