कापीराइट गजल
कई साल से सोया है किताब में ये गुलाब
हाल अपना कर रहा है खुद बयां गुलाब
क्या खूबसूरत था समां क्या था वो आलम
पेश जब उस ने किया ये खिलता हुआ गुलाब
यह बता नहीं सकते किस सोच में थे हम
जब कांपते हाथों ने थामा था ये गुलाब
सूख गया वो एक दिन छोड़ कर के निशां
मगर मौजूद था फिर भी वो हंसी गुलाब
किताब के वो पन्ने जब भी खोले हमने
हर बार नजर आया हंसता हुआ गुलाब
खो गए हम कहीं जब वक्त की धूल में
प्यार के हर सफर में नजर आया वो गुलाब
यादों के झरोखों से जब भी झांका हमने
यादों में ही गुम था फना हो कर वो गुलाब
याद रखना किस्सा तुम गुलाब का यादव
मर के हुआ अमर वो सुखा हुआ गुलाब
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है