हम वन के वासी, मूक प्राणी, न बोल सकें, न कह सकें,
पर दर्द हमारे दिल में भी है, क्यों तुम इसे ना समझ सकें?
हरियाली का स्वप्न सजाया, हमने ही धरती को पाला,
अब वही वनों के रक्षक, क्यों बन बैठे संकट का ज्वाला?
काट रहे हो घर हमारे, बिछा रहे हो लोहे के जाल,
हमको तो बस जीना भर है, न हम लूटें, न करें सवाल।
शेर, हाथी, हिरन, या चिड़ियाँ — सब जीवन की शृंखला हैं,
इनके बिना प्रकृति अधूरी, जैसे गीत बिना सरगम हैं।
तू सभ्यता में इतना डूबा, भूला जीवन का संतुलन,
तेरी सुविधा के नीचे, मच गया है जीवों का क्रंदन।
तू मालिक नहीं इस भू का, सह-यात्री मात्र कहलाए,
जो बाँटे प्रेम, रक्षा करे, वही सच्चा मानव कहलाए।
बस इतना कर दे इंसानों — न हम पे गोली, न पिंजरा हो,
हम भी सासें लें निर्भय-सी, जहाँ न जाल, न धिक्कार हो।
हम वन्य जन्तु, वन का श्रृंगार, हम जीवन का संतुलन हैं,
हमसे मत छीनो धरती का स्वर, हम भी सृष्टि का आँगन हैं।
अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




