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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

वन्‍य जीवों की पुकार - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

हम वन के वासी, मूक प्राणी, न बोल सकें, न कह सकें,
पर दर्द हमारे दिल में भी है, क्यों तुम इसे ना समझ सकें?

हरियाली का स्वप्न सजाया, हमने ही धरती को पाला,
अब वही वनों के रक्षक, क्यों बन बैठे संकट का ज्वाला?

काट रहे हो घर हमारे, बिछा रहे हो लोहे के जाल,
हमको तो बस जीना भर है, न हम लूटें, न करें सवाल।

शेर, हाथी, हिरन, या चिड़ियाँ — सब जीवन की शृंखला हैं,
इनके बिना प्रकृति अधूरी, जैसे गीत बिना सरगम हैं।

तू सभ्यता में इतना डूबा, भूला जीवन का संतुलन,
तेरी सुविधा के नीचे, मच गया है जीवों का क्रंदन।

तू मालिक नहीं इस भू का, सह-यात्री मात्र कहलाए,
जो बाँटे प्रेम, रक्षा करे, वही सच्चा मानव कहलाए।

बस इतना कर दे इंसानों — न हम पे गोली, न पिंजरा हो,
हम भी सासें लें निर्भय-सी, जहाँ न जाल, न धिक्कार हो।

हम वन्य जन्तु, वन का श्रृंगार, हम जीवन का संतुलन हैं,
हमसे मत छीनो धरती का स्वर, हम भी सृष्टि का आँगन हैं।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

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सुप्रिया साहू said

बहुत खूबसूरत एवं लाज़वाब रचना सर 👌👌, आजकल वनों की कटाई बहुत हो रही है, इसे काटने वाले भी हम हैं, पेड़ पौधे के काटने से जीवन में बहुत सारी दिक्कतें आ रही है, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Aapka bahut bahut abhar Adarneey Mam

सुभाष कुमार यादव said

अद्भुत रचना कौशल । वर्तमान की जिस भयावह समस्या को आपने रचना के माध्यम से रेखांकित किया है वह मार्मिक है। मूक प्राणियों की व्यथा को जिस प्रकार अभिव्यक्त किया निश्चय ही वह मनुष्य को विचार करने के लिए विवश कर रही। सादर प्रणाम पचौरी सर।🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय यादव सर जी का इतनी सजीव समीक्षा के लिए हृदय से आभार एवं सादर प्रणाम

Shiv Charan Dass said

बहुत खूब अशोक जी.............वन्य जीवों के मन का स्वर..... मत छीनो प्राणो का स्वर...... बहुत खूब जज़बात......सबके हित की है बात

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत आभार आदरणीय दास सर आपकी रचनायें तो रचनायें,समीक्षाएं भी मन मोह लेती हैं, आप तक सादर प्रणाम पहुंचे

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वन्यजीव की ऐसी पुकार अगर मानव मन पहुंच जाए तो विकास की आड़ जो जीवों का आंगन आशियाना, क्रीड़ांगन निर्बाध निश्चिंत होकर उजाड़ा जा रहा है,रूक जाएगा,पर काश ऐसा हो सकता, अशोक जी आपकी रचना में जो शब्द कौशल, भाव सौंदर्य परिलक्षित होती है, वाकई काबिले तारीफ है।तू सभ्यता में इतना डूबा, भूला जीवन का संतुलन।मानव समाज को सचेत करती ये कविता खूबसूरत संदेश देती है। सहृदय बधाई बधाई बधाई!!

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत आभार आदरणीय सोनवानी सर आपकी आत्मीय समीक्षा और आशीर्वाद इसी प्रकार बनाये रखें आपका बहुत आभारी हूँ सादर प्रणाम आदरणीय

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