तुम सबको भावो,
हर जज़्बे पर थावो,
हर चेहरा पढ़ पाओ —
ऐसी न तो आंख है,
न चश्मा, न चमत्कार, प्रिये।
जो हँस रहा है,
वो जरूरी नहीं तुम्हारे लिए हँस रहा हो,
हो सकता है —
कर्ज़ से दबा हो,
या किसी अफसर का नया चेला बना हो!
जो रो रहा है —
शायद टीवी सीरियल का सीन हो,
या गली के नुक्कड़ पर
गिलास में पानी की कमी हो।
हर अश्रु आत्मा की व्यथा नहीं होता, प्रिये।
तुम हर किसी के मन में
जगह बनाना चाहती हो —
पर गांव की पगडंडी में
हर राह अमराई नहीं होती।
हर कोई तुमसे प्रेम करेगा,
ऐसा ब्रह्मा ने लिखा नहीं है।
देखो —
गुलाब सबको सुगंध नहीं देता,
काँटों से भी दोस्ती करनी होती है
इस बगिया में टहलने को।
तुम अपने मन की बात कहो,
पर हर बार दाद की आशा मत रखो,
यह दुनिया ताली बजाने से ज़्यादा
ताली खींचने में यक़ीन रखती है।
तो हे देवी!
तुम्हें बस इतना करना है —
कि प्रेम करो
बिना प्रमाण के,
और चलो
बिना पश्चाताप के।
बाकी…
“तुम सबको भावो” —
ये बात है थोड़ी ‘भावुक’,
थोड़ी ’भावनात्मक’,
पर व्यवहार में
थोड़ी ’असंभव’, प्रिये।