तू निकल पहचान कर,
......खुद का परित्याग कर,
है अगर मानव तू,
......अज्ञंता का बहिष्कार कर
अज्ञंता का बहिष्कार कर,
लोभ माया मोह में,
......क्या धरा क्या धरा,
तू निकल पहचान कर,
......खुद का परित्याग कर,
सम्पत्ति तेरी तू नहीं,
......अपने ज्ञान का विस्तार कर,
समझ तू कौन है,
.......अग्नंता का बहिष्कार कर,
धूप और छाव का,
...... तू ना ख्याल कर,
तू निकल पहचान कर,
......खुद का परित्याग कर,
फूल नहीं कांटे सही,
.......जीवन का तू सार पढ़,
लोभ माया मोह में,
....... क्या धरा क्या धरा,
तू निकल पहचान कर,
......खुद का परित्याग कर,
खुद का परित्याग कर,
लेखक....... राजू वर्मा
सर्वाधिकार अधीन है