प्रकृति निराली बहुत सुहानी.
परम सुंदरी सदा लुभानी.
धरती प्यार करे अम्बर से.
मेघ सहज इत- उत नित बरसे.
सावन माह पुनीत पवित्रम.
नृत्य मयूरी अति प्रिय मनरम.
सर सरोज अतुलित प्रिय सुन्दर.
भौरे गूँजत रसमय मनहर.
झाँक रही पर्वत की माला.
गंगा जल अति पावन हाला.
नदियों का जल कल कल बहता.
पक्षी का कलरव प्रिय लगता.
प्रकृति देखकर प्रेम उमड़ता.
कविताओं का ताता लगता.
चले लेखनी प्रीति उकेरे.
लिखे प्रकृति का ज्ञान विखेरे
डॉ रामबली मिश्र