सिर्फ हसरत ही लिए जीना है
और हसरत ही लिए मरना है
रात दिन का जनून इतना बुरा
ढँग से खाना है ना ही पीना है
खूब ये चेहरा ही चमकता रहे
चाक दागों से भले ये सीना है
आदमी हो गया मशीन है दास
रातभर जगना दिन में सोना है
भला कैसा है सिलसिला अनंत
हर किसी को इसी में खोना है
दवा भी नहीं अब दुआ भी नहीं
खुद बीमार हो खुद ही रोना है II

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




