कापीराइट गजल
रोज चले आते हैं मेरे, ख्वाबों और ख्यालों में
ख्वाब नया दे जाते हैं, रातों और उजालों में
नींदों में जब भी हमने ख्वाब सुहाने देखे हैं
ख्वाब चुरा ले जाते हैं आ कर मेरे ख्यालों में
यादें उनकी आ-आ कर करती हैं बेहाल मुझे
गाहे-बगाहे आ जाते हैं अब भी रोज ख्यालों में
जब उसने ख्वाबों में प्यार का यूं इजहार किया
प्यार की ये सारी बातें उलझी रही सवालों में
कुछ लोग सजाते हैं, महफिल अपनी यादों की
टूटी हैं उम्मीद बहुत, इश्क में मरने वालों की
टूटे ना उम्मीद कोई अब तेरे ख़्वाबों की यादव
कुछ भी न हुआ हासिल ख्वाबों और खयालों में
- लेखराम यादव
(मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है