इस सत्य का अहसास अब होने लगा है
वो पुराना दौर अब खोने लगा है
एक चमक चेहरे पे थी आँखों में नूर था
आदमी का कद कम होने लगा है
आज की परवाह थी ना कल की फिक्र
रात दिन अब वो यहाँ रोने लगा है
झोपड़ी से प्यार था महलों से बढ़कर
बंगलों में तो चैन सब खोने लगा है
अब हमारी जिन्दगी भारी हो गई बहुत
दास कांधों पर लिए ढोने लगा है....
 
        
     
                 
 The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



 The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra




 
         
         
         
         
         
         
        