रिश्तों में अपनापन टटोलती जिन्दगी।
निहार रहीं हाथ से फिसलती जिन्दगी।।
कम हो गई बाते मुलाकातें मेरी उसकी।
बच्चे बड़े हो गये अदब खाती जिन्दगी।।
दिल का दिल से नाता अब भी गहरा।
प्यार के खजाने से मेल खाती जिन्दगी।।
कुछ न कह पाने की परिस्थिति बन गई।
तन्हाई में अपने आप बड़बड़ाती जिन्दगी।।
ख्वाब की दुनिया से निकले कैसे 'उपदेश'।
याद के समुन्दर में गोता खाती जिन्दगी।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद