खुशबू हवा के साथ भाग गई।
फूल में सुंदरता रही गर्माहट गई।।
नदी का इंतजार सागर को रहा।
उसकी धारा शहर में भटक गई।।
मन सितारों के संग सुबकता रहा।
आत्मा उसकी यादो में बहल गई।।
बरखा ने बदलो का साथ छोड़ा।
धरती के आँचल में वो मचल गई।।
प्रेम को इंतजार रहा एक कलाई का।
इंतजार में 'उपदेश' बाजी पलट गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद