पत्नी का चाँद से है रिश्ता,
है पक्ष कृष्ण तो शुक्ल भी है !!
जितनी हैं कलायें चन्दा में,
उतनी पत्नी में भी होती है !!
पत्नी और प्रेमिका में अंतर,
ये साफ दिखाई देता है !!
प्रेमिका में पूर्णिमा होता बस,
पत्नी में अमावस भी होती है !!
प्रेमिका जीवन की शीतलता,
जो दिल पे बसेरा करती है !!
पत्नी का कब्जा पूरे तन में,
नस-नस में विचरण करती है !!
प्रेमिका है स्वर्ग का विज्ञापन,
पत्नी ही किवाड़ें खोलती है !!
सब ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं,
पत्नी की नज़र जो पड़ती है !!
प्रेमिका फुहारें सावन की,
पत्नी अति बारिश होती है !!
इक में सौंधी खुशबू आती,
दूजे में किच-किच होती है !!
है ज्ञानसत्व बस इतना बन्धु,
प्रेमिका अर्ध चाँद सी है होती !!
पत्नी जब बन जाती है वही,
पूरी अर्धांगिनी होती है !!
-- वेदव्यास मिश्र की गहन शोध रचना
सर्वाधिकार अधीन है