अपने मन ,कर्म और वचन से, सदा हर प्राणी को हम प्यार करें |
सबके साथ मिलकर रहें , और सभी को मित्रवत व्यवहार करें ||
मन ,कर्म और वचन से ,किसी भी जीव को चोट नहीं पहुंचाना है |
सभी प्राणियों के हित में हमको , अपना ये जीवन बिताना है ||
सदा सत्य के साथ रहें और सभी प्राणियों का सम्मान करें |
सभी प्राणियों के प्रति प्रेम बनी रहे, किसी का ना अपमान करें ||
किसी भी हालत में, हमारी वजह से, किसी का ना नुकसान हो |
अपना जीवन यदि खास बनाएं, तो जगह-जगह सम्मान हो |
शारीरिक रूप से ना झगड़ा करना,चोट ना करना हथियार से |
प्रेम के भुखे सब रहते हैं, हमें बात करना है, सभी को प्यार से ||
मन ही देवता मन ही ईश्वर, तुम्हारे मन में ना किसी से बैर रहे |
मन की गति से नभ में ना उड़ना, तुम्हारे धरती पर ही पैर रहे ||
मुख से किसी को ना गाली देना,ओ भी हिंसा कहलाता है |
किसी प्राणी को पीड़ित ना करना,यही अहिंसा को जताता है ||
शब्द तुम्हारे मीठे-सरल हों, किसी के दिल को ना घाव करे |
तुम्हारी वाणी सभी को प्रिय हो, हर प्राणी पर प्रभाव करे ||
गांधी जी ने अहिंसा का धर्म,मन,कर्म, और वचन से निभाया था |
हिंसा को उसने खुद त्याग किया था, अहिंसा का धर्म सीखाया था ||
हिंसा से खुद को तनाव है होता, और होते अनेक अत्याचार हैं |
अहिंसा का सदा पालन करें हर प्राणी, यही जीवन के सदाचार हैं ||
रचनाकार- प्रेमलाल किशन (सहा.शि.)
विकास खंड व जिला -सक्ती छत्तीसगढ़