नारी व्यथा
जीवन की गाथा लिखती हूँ. एक नारी की व्यथा लिखती हूँ
स्वप्न्-सुधा में जो सोई है. अपने आँचल बीच जो रोई है, समय की गति देखकर , जीवन की नैया खुद खेकर
जो समाज बीच खडी हुई अस्तित्व के लिए लड़ी हुई, धरा के स्वर्ग पर देवी की कथा लिखती हूं, एक नारी की व्यथा लिखती हूँ.
अपार शक्ति छिपा है अंदर. अंधेरे भवसागर में फंसा समंदर, सहनशीलता की मूरत प्रकाश पुंज से भरा उसका सूरत
कोरे कागज पर स्याही का पता लिखती हूं ,एक नारी की व्यथा लिखती हूँ
अंतर्मन में संघर्ष लिये, फिर भी अधर पर उत्कर्ष लिए नित्य कार्य मे रम जाती , सांझ की चिडिया सा चहक जाती, आसमा के नीले रंगो पर बादल की खता लिखती हूं, एक नारी की व्यथा लिखती हूं।
...✍️..कृति मौर्या