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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मुझे मेरी मर्जी से जीने दो

तन, मन, धन सब अर्पण कर दूँ, पर बंधन से मुक्त रहूँ,
बाँधो मत मेरी उड़ानों को, मैं अपनी मंज़िल खुद चुनूँ।

श्रद्धा से झुक जाऊँ लेकिन, स्वाभिमान ना तोड़ो तुम,
मुझसे मेरी पहचान न छीनो, अस्तित्व न हर लो तुम।

तुम नीति बना सकते हो पर, मेरी सोच न बाँध सको,
मैं धूप, हवा, मैं अम्बर हूँ, मुझको ना तुम रोक सको।

जो बोलूँ, दिल से बोलूँ, डर से न हो मौन मेरा,
मुझको मेरी मर्जी से जीने दो ये स्वप्न सुनहरा।

ना रुकूँ किसी भी राह पर, बस इसलिए कि तुम कहो,
जो सत्य लगे, वही चलूँ, तुम दमन की भाषा न कहो।

इज़्ज़त दो ना सिर्फ लब्ज़ों से, व्यवहार भी हो दर्पण-सा,
ना देखो मुझको उपभोग-सा, देखो एक समर्पण-सा।

ना तोड़ो मेरी चाहों को, ना मुझपे हुक्म चलाओ,
मुझको मेरी स्वतंत्र सांसें, मेरे हक़ से ही दिलवाओ।

ये तन नहीं कोई कठपुतली, ये मन भी मेरा अपना है,
मैं भी इक जीवित आत्मा हूँ, ना कोई साज़, ना सपना है।

खामोशी को मत समझो सहमति, कभी तो धड़कन सुनो,
खुदा के इस अनमोल स्वरूप को, बंधनों से मत बुनो।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (7)

+

शिवचरण दास said

बहुत खूब. ....वाह वाह ..फ़िजा आजादी का ही तो नाम है

फ़िज़ा replied

बहुत - बहुत शुक्रिया आपका

श्रेयसी said

वाह लाजवाब व्यवहार भी हो दर्पण-सा.... बहुत ख़ूब 🙏🙏

फ़िज़ा replied

बहुत - बहुत शुक्रिया आपका

रीना कुमारी प्रजापत said

वाह वाह क्या बात है बहुत खूब 👌🙏

फ़िज़ा replied

बहुत -बहुत शुक्रिया आपका

सुप्रिया साहू said

बहुत खूबसूरत रचना मैम 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

फ़िज़ा replied

बहुत -बहुत शुक्रिया आपका

सुभाष कुमार यादव said

बेहद खूबसूरत रचना।👌👌👌

फ़िज़ा replied

बहुत शुक्रिया आपका

वन्दना सूद said

शानदार लेखन ✍️✍️हर एक पंक्ति अपने मान सम्मान के लिए हक़ माँगती हैबहुत सुंदर सच ब्यान किया आपने 👏👏👌👌🙌🏻

फ़िज़ा replied

बहुत शुक्रिया आपका

पवन कुमार "क्षितिज" said

बेहतरीन लिखा

फ़िज़ा replied

बहुत शुक्रिया आपका

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