तन, मन, धन सब अर्पण कर दूँ, पर बंधन से मुक्त रहूँ,
बाँधो मत मेरी उड़ानों को, मैं अपनी मंज़िल खुद चुनूँ।
श्रद्धा से झुक जाऊँ लेकिन, स्वाभिमान ना तोड़ो तुम,
मुझसे मेरी पहचान न छीनो, अस्तित्व न हर लो तुम।
तुम नीति बना सकते हो पर, मेरी सोच न बाँध सको,
मैं धूप, हवा, मैं अम्बर हूँ, मुझको ना तुम रोक सको।
जो बोलूँ, दिल से बोलूँ, डर से न हो मौन मेरा,
मुझको मेरी मर्जी से जीने दो ये स्वप्न सुनहरा।
ना रुकूँ किसी भी राह पर, बस इसलिए कि तुम कहो,
जो सत्य लगे, वही चलूँ, तुम दमन की भाषा न कहो।
इज़्ज़त दो ना सिर्फ लब्ज़ों से, व्यवहार भी हो दर्पण-सा,
ना देखो मुझको उपभोग-सा, देखो एक समर्पण-सा।
ना तोड़ो मेरी चाहों को, ना मुझपे हुक्म चलाओ,
मुझको मेरी स्वतंत्र सांसें, मेरे हक़ से ही दिलवाओ।
ये तन नहीं कोई कठपुतली, ये मन भी मेरा अपना है,
मैं भी इक जीवित आत्मा हूँ, ना कोई साज़, ना सपना है।
खामोशी को मत समझो सहमति, कभी तो धड़कन सुनो,
खुदा के इस अनमोल स्वरूप को, बंधनों से मत बुनो।