छलियापन इस दुनिया में,
क्षण भर में होता उलटफेर,
अंधेरे को उजाला हैं बताते ,
मुंह देख तमाचा देर सबेर,
दहकते अंगारों के खेल में,
बर्फीले फाहे-चट्टानों के ढेर,
दिन मे शरेआम तारे दिखाते,
फरेबी धूर्त दकियानूसी शेर ,
संतुष्ट की चाहत रोटी तक ,
असंतुष्ट दौडे बनने धनकुबेर,
कस्तूरी की चाहत में व्याकुल,
मृग की तृष्णा मनभ्रमित फेर !
✒️ राजेश कुमार कौशल