कुछ पल चुप रहो, शब्दों से आगे बढ़ो,
जहाँ मौन की गहराई में, आत्मा की बात होती है।
भीड़ से हटकर, अकेले में चलो,
वहीं तो अपनी असल मुलाक़ात होती है।
हर रोज़ की दौड़ में, कुछ खो सा गया है,
जो दिल था कभी धड़कता, अब सोचों में बंधा है।
चलो, थोड़ा रुक जाएँ, साँसों को सुनें,
इस जीवन की शोरगुल में, खुद को चुनें।
हर मुस्कान के पीछे कोई ग़म भी छिपा है,
हर चमकते चेहरे पर कोई धुंधला सा सपना टिका है।
जो कह न सके लफ़्ज़ों में, वो आँखें बयाँ कर देती हैं,
और जो सुन न सके दुनिया, वो कविता कह देती है।
चलो, आज फिर से कुछ नया रचें,
बचपन के जैसे, सपनों को काग़ज़ पर सजाएँ।
ना परिणाम की चिंता, ना मंज़िल का डर,
बस लहरों के संग, अपने मन को बहाएँ।