बिस्तर पर पागलपन सारी रात रमता।
आँख लग जाती तभी दिन निकलता।।
कमरा दीवार-ओ-दर और अकुलाहट।
ख्वाब की गहरी धूप में तन्हा सुलगता।।
तकिया गीली हो जाती पसीना भर से।
करवट बदल कर 'उपदेश' सिर मलता।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद
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तकिया गीली हो जाती पसीना भर से।
करवट बदल कर 'उपदेश' सिर मलता।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद