केवल यही एक हकीकत है
एहसास हकीकत नहीं देखते
भावनाओं में बहते जाते हैं
समय उन्हें ऐसी डोर से बाँध देता है
जिन्हें तोड़ पाना आसान नहीं होता
बच्चा अभी माँ के अन्दर होता है
कि माता-पिता कितने सपने बुन लेते हैं
फिर बच्चे का उनके जीवन में आना
नित्यप्रति उनके नटखटपन देखना
कभी चपलता,अस्थिरता तो कभी गंभीरता
बचपन से तरुणावस्था का उसका सफ़र
उसके बदलते हर बदलाव का साथी बनना
ऐसा प्रेम जिसका कोई मोल नहीं
कैसे इस बन्धन को मोह कह दें
उम्र के आख़िरी पड़ाव में कैसे मान लें
कि जितना भी जीवन बिताया
वो सब एक छल था,हकीकत नहीं थी
एक क्षण में सब कुछ छोड़ कर चले जाना है
केवल यही एक हकीकत है जिसे मान पाना कठिन है ..
---- वन्दना सूद