कविता : आस...
तुम मेरी थी मेरी हो
तुम मेरी ही रहना है
ये कहता था कहता हूं
यही मेरा कहना है
मगर तुम गलती से
हो चुकी किसी की
बहुत दुख तकलीफ
है मुझ को इसी की
फिर भी तुम्हारे नाम से ही
चलती मेरी सांस है
लास्ट में जा कर मेरी ही बन कर
रहेगी ये मेरी आस है
लास्ट में जा कर मेरी ही बन कर
रहेगी ये मेरी आस है.......
netra prasad gautam