कलम की मनमानी
सोच कर कुछ बैठते हैं,
लिखना कुछ चाहते हैं,
पर लिखा कुछ और ही जाता है।
कागज़ पर अनकहे जज़्बात उतर आते हैं,
मानो कलम अपनी ही मर्जी जताने लगी है,
या आजकल मन में छुपी भावनाओं को
ख़ुद ही बुनने लगी है।
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है