ये नदियां भी लगतीं हैं बेटियाँ.....
न जाने कितने प्रेमग्रन्थ और सभ्यताओं को समेटे हैं,
एक बिछड़े घर की खोज में ढूंढती हैं कोई नया आसियां
पहाड़ों की कंदराओं से निकल छोड़ उनका आलिंद,
होकर विरल चलती हैं सदा मिलने को ये नदियां
ये नदियां भी लगतीं हैं बेटियाँ.....
जिस तरह माँ की कोख से जन्मी कोई लड़की
छोड़ जाती हैं बाबुल के आंगन की गलियां
मिलने से पहले पिय को, कटती है बंटती है,
कई दफा नदी बनाती है डेल्टा अगर
तो रिश्ते बना तमाम मिलती हैं बेटियां
ये नदियां भी लगती है बेटियां.........
पीहर अगर हैं ऊँचा शिखर सा
तो सागर ससुराल जैसा है,
कोई ऊंचा बहुत है तो कोई लम्बा बहुत ही है,
जन्म बाप का नाम लेकर
कर्म खुद के नाम और अंत प्रियतम का नाम
लेकर मिट जाती हैं वो बेटियां
ये नदियां भी लगती हैं बेटियां.....