खाल-इज्जत-साँसे-गैरत,
धूप में सब कुछ जले,
खून का संचार भी कम,
कम-सा नस-नस में चले,
दो-दो रोटी माँगे-माँगे,
सूख जाते हैं गले,
मिल गई तो भी भले और,
न मिली तो भी भले,
भूख की तड़पन मिटाने,
पेट पापी हो गया,
नाम कर बैठे भिखारी,
दर्द साकी हो गया.....................
बोलना आता मगर है,
बोल कुछ पाते नहीं,
रंज में रोते हैं पीते,
अश्क पी पाते नहीं,
है उन्हें मालूम सब कुछ,
शर्म वो खाते नहीं,
इसलिये बेशर्म बनते,
भूख सुन पाते नहीं,
फूल से बच्चे हैं मैले,
छोटे-छोटे दो-फुटे,
एक को कुछ दे दिया,
तो घेर लेते झुरमुटे,
कोई बिटिया चाँद सी है,
कोई बच्चा अर्जुना,
शक्ल हँसती वाह रे किस्मत,
भाग सबके सरफुटे,
हर कटोरा पेन बना है,
हाथ कापी हो गया,
भूख की तड़पन मिटाने,
पेट पापी हो गया,
नाम कर बैठे भिखारी,
दर्द साकी हो गया...........................
VIJAY VARSAAL.............