हमने भी सपने देखे थे,
आसमान जितने बड़े,
पर हालात की दीवारें
हर रोज़ कुछ ऊँची होती गईं।
कभी मेहनत ने थाम लिया हाथ,
तो कभी अपनों ने ही
कह दिया—
“अब यहीं रुक जाओ।”
हम हँसते रहे सबके सामने,
पर भीतर की थकान
हर रात तकिये पर
आँसू बनकर उतर आती थी।
रास्ते आसान नहीं थे,
पर लौटना भी हमें
नसीब नहीं हुआ—
इसलिए चलते रहे
टूटते-बनते, गिरते-सँभलते।
हर हार ने कुछ सिखाया,
हर चोट ने हमें
थोड़ा और मज़बूत किया।
जो मिला, उसे सीखा;
जो खोया, उसने पहचान दी।
आज जब पीछे मुड़कर देखते हैं,
तो अफ़सोस कम
और गर्व ज़्यादा होता है—
कि हमने हालातों से
समझौता नहीं किया।
यह हमारी आपबीती है—
शब्दों में लिखी नहीं,
जीवन में जानी हुई;
जो आज भी हमें
आगे बढ़ने की हिम्मत देती है।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







