मिला है मौका तो आसमानों में सुराख कर देंगें।
हैं हम बड़े हीं हौसलें वालें पत्थर पे भी फूल खिला देंगें।
ना डिगे हैं ना डीगेंगें कदम कभी हमारें हम बिन कदमों के भी दौड़ लगा सकते हैं।
रोकेगा क्या ये अहले ज़माना हम पानी में भी आग लगा सकतें हैं।
चाह ना राजा बनने की ना दीन हीन बनने की ।
हैं हम आदमी बस चाह है आदमी बनने की।
वो गुलिस्ता में सिर्फ़ फूलों की चाह रखतें हैं
पर हम कांटों से भी अक्सर प्यार करतें हैं ।
बदलते देखा लोगों को मौकापरस्त हो जातें हैं।
अपनी किस्से को क्या कहिए औरों की भी हिस्से को पचा जातें हैं।
बचना थोड़ा मुश्किल है इन लोगों से
क्योंकि ये बनकर दोस्त पीठ पीछे वार करतें हैं।
पर हैं हम आदमी ज़रा हट के हम कांटों से भी प्यार करतें हैं।
जो नफरतें सरेआम करतें हैं हम उनका भी
एहतराम करते हैं..
हैं हम आदमी और आदमी से प्यार करतें हैं..
हैं हम आदमी और आदमी से प्यार करतें हैं..