जाने किसने बताए, मेरे दिल के राज़ उनको..
अब होने लगे हैं बे–वज़ह के एतराज़ उनको..।
हर राह पर बने थे, कदमों के निशाँ साथ–साथ..
आंधियाँ न चली, फिर किसने मिटाया आज़ उनको..।
हमारे ऐब भी थे उनके लिए, काबीले–तारीफ़ कभी..
अब तो रास नहीं आते, हमारे शोख़–मिजाज़ उनको..।
वो देते थे हमको, दवाओं के साथ दुआएं भी बहुत..
जाने क्यूं लगा हमारा, हर मर्ज़ ला–ईलाज उनको..
तर्क ए ताल्लुक़ का दुनिया से, जिक्र का सिला क्या..
वफ़ा में बेवफ़ाई का, मालूम नहीं क्या रिवाज़ उनको..।
पवन कुमार "क्षितिज"