हरियाली की चादर ओढ़े,
धरती हँसती जाती है।
पर्वत, नदियाँ, फूलों की बोली,
गीत स्नेह के गाती है।
नीले अंबर की बाँहों में,
बादल सपने बुनते हैं।
शांत हवा के झोंकों में,
मन के राग झरते हैं।
सूरज की पहली किरणें,
जब ओस को चूमती हैं,
हर पत्ती मुस्काती है,
धरती माँ झूमती है।
चिड़ियों की चहचहाहट में,
कोई संदेश छिपा है।
कहती हैं - "हमसे सीखो,
जीवन कितना सधा है!"
पर हम अपने स्वार्थवश,
इस सुंदरता को खोते हैं।
वृक्ष काट, नदी सुखा,
साँसों तक को रोते हैं।
चलो, फिर से संकल्प लें,
प्रकृति को ना रुलाएँगे।
हर पेड़ को बचाएँगे,
धरती को स्वर्ग बनाएँगे।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




