बहती रेत की मुट्ठी
शिवानी जैन एडवोकेटbyss
शिकायतें तो यही धरी की धरी रह जाएंगी,
जैसे बहती रेत की मुट्ठी, कब तक तुम थाम पाओगे?
यह जीवन की आपाधापी, कब किसको मिली है फुरसत,
अपनी ही उलझनों में सब हैं, किसे अपनी सुनाओगे?
जो बीत गया सो बीत गया, उस पर क्या रोना-धोना,
आने वाला कल भी अनजाना, क्यों व्यर्थ की चिंता ढोना?
यह वर्तमान ही सत्य है, इसमें ही जीना सीखो,
शिकायतों के बोझ से मन को, क्यों इतना भारी करना?
दूसरों की राहों में कांटे, अपनी राहों में फूल चुनो,
अपनी कमियों को देखो पहले, दूसरों पर मत ऊँगली तनो।
यह दुनिया है कर्मों की नगरी, सबको अपना फल मिलेगा,
शिकायतों से क्या बदलेगा, जो विधि का लिखा है चलेगा।
इसलिए छोड़ो यह शिकवा-शिकायत का सिलसिला,
खुशी के पल चुनो, और प्यार से हर दिल से मिला।
यह जीवन है अनमोल, इसे हंसकर बिताओ,
शिकायतें तो धरी रह जाएंगी, अंत में पछताओगे।