बड़ी बेरहम दुनिया है इसका क्या करेगा कोई
लफ्ज का बस मरहम इसका क्या करेगा कोई
रोज हजारों मरते जाते हैं रोज हजारों आजाते हैं
अब बरहम बस नारे हैं इसका क्या करेगा कोई
ना दवा है ना दुआ है हर तरफ बस गहरा धुआँ
दम अब घुटने वाले हैँ इसका क्या करेगा कोई
रात गई सो बात गई सुबह हुई कुछ याद नहीं है
वादे खुद टूटने वाले हैं इसका क्या करेगा कोई
इस महफ़िल में आके दास बेवजह ना हो उदास
जाम के साथ निवाले हैं इसका क्या करेगा कोई