चाहती कोई छुए अंतस मन मेरा।
लालसा पूरी गौरवांवित मन मेरा।।
खुद की सूनी वंचित बाहों में आए।
सूरज की तरह गरम करे तन मेरा।।
कपड़ों के उस पार वो इस पार मैं।
देह खींचे जोर से खिले मन मेरा।।
भवसागर में बिखरता प्यार जैसा।
कचोटे ना सकुचाये ना मन मेरा।।
खुद के भार से भयभीत 'उपदेश'।
उसके भार में शामिल मन मेरा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद