तुम्हारी स्मृतियाँ संग्रहालय की तरह सजाई मैंने।
होश-ओ-हवाश में की गई अठखेलियाँ दबाई मैंने।।
झगड़ा तर्क-वितर्क शान्ति की जरूरत बनी रही।
दिल-ओ-दिमाग में रहे अंतर्द्वंद से शादी रचाई मैंने।।
तेरा प्रेम मेरे लिए कबीरदास के दोहों से कम नही।
पवित्र सुन्दर रमणीय प्रेम की भव्यता सजोई मैंने।।
तुम्हारी अदाएं खगोलीय जानकारी कराती देखी।
हृदय स्पन्दन से चाँद तारो की आभा जगाई मैंने।।
तेरी भेषभूसा और सादगी पर रहे फिदा 'उपदेश'।
संग संग रहने की स्वीकृति सहज में अपनाई मैंने।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद